Saturday 20 August 2022

कौन आया था | horror story in hindi | Best Ghost Stories In Hindi

कौन आया था | horror story in hindi | Best Ghost Stories In Hindi 


सुरभि को नींद नहीं आ रही थी। कभी इस करवट तो कभी उस करवट बेचैन। नजर रह-रह के खुली खिड़की पर जाती या फिर अपने पीठ पीछे। खुद पर ही गुस्सा आ रहा था। क्यों देखती है वह डरावने सीरियल, भूतिया फिल्में? फिर से मन में चलने लगा न अकेले होते ही वही सब! मम्मी-पापा, दादी भी शादी में गये हुए। मोबाइल में समय देखा तो बारह बज के दो मिनट। तुरंत दिमाग में कौंधा "बारह बजे से चार बजे सुबह तक का समय शैतानी शक्तियों का होता"। घबराहट को और भी पंख लग गये। जबरदस्ती आँखें बंद कर लेट गयी और मन को एकाग्र करने की कोशिश करने लगी जिससे नींद आ जाए। ये सब करते अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि अचानक पैरों में कुछ सुरसुराहट महसूस हुई। देखा तो कोई डरावना सा हाथ पैरों को छू रहा था। वह जोर से चीख उठी लेकिन आसपास कोई नहीं था।





"ओह्ह चलो सपना था"


सीने पर हाथ रख के सोचा। दिल बहुत कस के धड़कने लगा था। तेज-तेज साँसे लेती फिर से पलकें मूँद लेट गयी। तभी बिछिया की आवाज आयी


"क्या हुआ बाबू, चिल्लाई क्यों?"


"अरे बिछिया चाची, आप इस समय"


बिछिया उसके घर की नौकरानी थी और उनलोगों के साथ ही रहती थी। उसकी उम्र सुरभि के दादी से कुछ साल ही कम थी सो वह उसे "बाबू" और सुरभि उसे "बिछिया चाची" कह के बुलाती थी।


"एक बिल्ली किचन में घुस आयी थी, उसी को भगाने में यहाँ तक आ गये हम तो तुम्हारे चिल्लाने की आवाज सुनी"


"हाहा तुम्हारी नींद बिल्ली ने तोड़ दी"


सुरभि ने हँसते हुए कहा। वह कई बार बिछिया को किचन के बजाए पास के कमरे में सोने को कह चुकी थी लेकिन वह नहीं मानती थी।


"और सो किचन में, बढ़िया हुआ"


"अरे अब क्या बुढ़ापे में मालिक का कमरा हथियाना बेटा"


बिछिया उसके बिस्तर पर बैठ गयी।


"हाँ अब बताओ, क्यों हल्ला कर रही थी"


"अरे चाची, मैं न पागल हूँ, भूतिया सिनेमा देखना पसंद और बाद में डरना और भी पसंद"


"तुम्हें भूत पसंद हैं?"


"हाहा हाँ, बहुत" सुरभि अब पूरे मस्ती के मूड में आ चुकी थी। बिछिया के आ जाने से सारा डर फुर्र हो गया था।


"हम्म" बिछिया ने लंबी साँस ली। "भूत अपनी अतृप्त इच्छाओं को पूरा करने की आस में भटकते हैं बाबू"


"अरे, तुमको पता उनका सिस्टम चाची, जल्दी बताओ न और" सुरभि उत्साहित हो उठी।


"बताना क्या? यही समझ लो कि जो चीज तुम्हें दिन में नहीं मिल सकी, उसके लिए तुम रात में भी जागकर प्रयास कर रही हो"


"अच्छा"


"हाँ और हर भूत बुरा नहीं होता। सबसे डरने की जरूरत नहीं"


"लेकिन चाची, भूत किसी के पास जाते और किसी के पास नहीं जाते, ऐसा क्यों?"


बिछिया मुस्कुरा उठी


"तुम किस आदमी के साथ रहना पसंद करोगी?"


"म्म्म हाँ, जो मेरे जैसा सोचता हो, रहता हो" सुरभि ने जवाब दिया।


"हाँ" बिछिया ने तुरंत उसकी बात को समर्थन दिया "बिल्कुल, यही भूतों के भी साथ, तुम्हारा जीने का तरीका कैसा है, वही तुम्हारे संगी-साथियों का निर्धारण करेगा अब चाहे वो इंसान हो या कोई आत्मा"


"अच्छा" सुरभि बिस्तर से उतरकर खड़ी हो गयी "लगता है चाची बाहर मौसम खराब हो रहा, ठंड सी लग रही। चलो नीचे से पानी पीकर आते हैं, नींद भी आने लगी अब"


"अरे तो तुमको पीना, तुम जाओ। मैं क्यों आऊँ?"


"चलो न"


"सीधे बोलो कि डर लग रहा"


"ए चाची, मैं नहीं डरती" सुरभि बिछिया को अँगूठा दिखा सीढ़ियों की ओर चल दी। डर तो सचमुच लग ही रहा था। धीरे-धीरे कुछ ही सीढ़ियाँ उतरी थी कि सामने का मंजर देख दिल बहुत जोर से उछल गया। एक सफेद साड़ी पहने बुढ़िया लंबी सी जीभ निकाले घुटनों के बल चलती हुई सीढ़ी के ठीक सामने से गुजर रही थी। उसके बाल खुले हुए थे और देखते ही देखते उसकी गर्दन घूमने लगी तथा पूरे तीन सौ साठ डिग्री पर घूम गयी। सुरभि की चीख निकलने ही वाली थी कि किसी ने उसका मुँह दबा दिया। उसको चक्कर सा आने लगा लेकिन नीचे झुकते-झुकते किसी तरह पीछे देख लिया। बिछिया ही उसके मुँह पर हाथ रखे उसको चुप रहने का इशारा कर रही थी। सुरभि की आँखों में बसे डर ने आँसुओं का रूप ले लिया। बिछिया सुरभि को वापस ऊपर कमरे में ले गयी।


"चाची वो कौन है नीचे" सुरभि की रुलाई अब फूट पड़ी। वो अपनी आवाज धीमी रखने की हरसंभव कोशिश कर रही थी।


"बाबू चुप रह, वो प्रेतनी है" बिछिया का चेहरा भी भय से भरा हुआ था। सुरभि के दिल ने फिर तेज-तेज कूदना शुरू कर दिया। वह पसीने-पसीने हो गयी। उसने बिछिया के हाथ पकड़ लिए।


"चाची अब क्या होगा?" उसका रोना और भभक गया।


"चुपचाप यहीं बैठ, कोई टोका-टोकी मत कर, तुझे न दिनभर भूत-भूत जपने में मजा आता है न? ले आ गयी उनकी नानी" बिछिया गुस्से में फुसफुसाती हुई बोली। सुरभि रोये जा रही थी। 


"पापा-मम्मी भी नहीं हैं, मैं किसके पास जाऊँ?"


"पापा-मम्मी रह के क्या कर लेते? अच्छा ही है कोई नहीं अभी वर्ना उनकी जान को खतरा हो सकता था"


तभी नीचे से आवाज आयी


"बेटा सुरभि, हम आ गये, दरवाजा खोल दो"


सुरभि हड़बड़ा उठी


"च...चाची...चाची, पापा-मम्मी आ गये लेकिन नीचे तो वो..."


बिछिया ने उसे झटाक से वापस बिस्तर पर खींचा


"अरे पागल लड़की, आवाज पर ध्यान दे, वो तेरे पापा के जैसी आवाज है, पापा की नहीं, सुना नहीं कैसे नाक से बोली हुई! वो तुझे नीचे बुलाने के लिए ही सबकुछ कर रही"


"म...मैं क्या करूँ अब?" सुरभि की आवाज भागने लगी। बिछिया ने उसे झिंझोड़ा


"तू डर से ही जान दे दे, बोला न मैंने कि बस चुपचाप बैठ! प्रेतों को पता नहीं चलना चाहिए कि हमने उनको देखा"


सुरभि एकटक से दरवाजे की ओर देख रही थी। बिछिया ने उसे गले से लगा लिया


"बाबू थोड़ा पूजा-पाठ करना, भगवान का नाम लेना सीखो, फैशन के चक्कर में आज की पीढ़ी नकारात्मक शक्तियों को अपने आसपास सहज वातावरण उपलब्ध करा देती"


सुरभि का गला सूख रहा था। आँसू गालों पर ढलके हुए थे। वह बिछिया से लिपटी रह-रह के सिसक रही थी। धीरे-धीरे उसकी आँखों के आगे अँधेरा छाता चला गया। बिछिया के जोर-जोर से पुकारने की आवाजों से उसकी आँखें खुलीं। उसने देखा कि वह उसका सिर अपनी गोद में लिए बैठी थी। सुबह का उजाला चारों ओर फैल चुका था। पापा-मम्मी और दादी सब उसके बिस्तर पर बैठे चिन्तित नजरों से उसे ही देख रहे थे।


"बाबू क्या हुआ तुमको?" बिछिया ने प्यार से उसका चेहरा अपनी हथेलियों में लेकर पूछा। सुरभि उठकर बैठ गयी और फूट-फूट के रोने लगी, सबलोग उसे चुप कराने की कोशिश करने लगे। थोड़ी देर में सुरभि कुछ शांत हुई। उसने बिछिया से पूछा


"चाची, वो कहाँ गयी?"


"कौन?" बिछिया ने हैरत से कहा।


"वो प्रे..." सुरभि के शब्द बीच में ही रुक गये। मम्मी ने उसके कंधे पर हाथ रखा


"बेटा, कोई सपना देख रही थी?"


"नहीं मम्मी, बिछिया चाची से पूछो न सब" सुरभि थोड़ा झल्लाकर बोली।


"चाची से क्या पूछना? वो तो हमारे साथ ही यहाँ आयी हैं, तुम बेहोश जैसी कर रही थी एकदम अभी, हमें पहले बता देती अगर मन ठीक नहीं था तो! हम नहीं जाते शादी में" पापा उसे दुलारते हुए बोले।


"क्या?" सुरभि का माथा घूम गया।


"हाँ, हम लौटे तो बिछिया ने दरवाजा खोला, तेरी मम्मी यहाँ तेरे कमरे में आयी तो तू बेसुध पड़ी थी, उसने चिल्ला के हमें बुला लिया। तेरा पापा डॉक्टर को लाने जा रहा था लेकिन बिछिया ने तुझे होश में लाने की कोशिश की और तू आ भी गयी" दादी ने सारी बात उसे बतायी।


"चाची तुम तो मेरे साथ ही थी न रात को? ये क्या मजाक हो रहा यहाँ? सुरभि बुरी तरह उखड़ गयी। उसने रात की पूरी घटना सबको बतायी। 


"बाबू, मैं तो कल रात जगी ही नहीं, तेरे पास कैसे आती? कोई सपना देखा होगा" बिछिया ने उसको समझाया। 


"बेटा, रुको मैं डॉक्टर को ले ही आता हूँ" पापा डॉक्टर को बुलाने चले गये। सुरभि चुपचाप सब सुनती रही। डॉक्टर आया और कुछ विटामिन्स की दवाएँ देकर चला गया। थोड़ी देर में घर का वातावरण सामान्य होने लगा। नाश्ता के बाद दवाएँ लेकर सुरभि अपने कमरे में लेटी कल रात की घटना के बारे में ही सोच रही थी। उसे ध्यान आ रहा था कि जो बिछिया चाची उसके साथ थी, उसने पूरे समय में एक भी बार अपनी पलकें नहीं झपकायीं। उसी के आने के बाद सुरभि को ठंड भी भी लगने लगी थी जबकि बाहर का मौसम बिल्कुल सही था। इसके अलावा सीढ़ी के नीचे जहाँ वह प्रेतनी उसे नजर आयी थी, वहाँ कई दिनों से होनेवाली अजीबोगरीब घटनाएँ जैसे बल्ब का अचानक जलने-बुझने लगना, तेज सुगंध आना जिसे उसने हमेशा अनदेखा किया, सबकुछ एक-एक कर उसके अंदर चलने लगा था।


धीरे-धीरे इस घटना को कई दिन बीत गये। भगवान और आस्था का हमेशा मजाक उड़ाने वाली सुरभि ने अब नियम से पूजा-पाठ करना शुरू कर दिया था। आस्तिकता में बसी सकारात्मकता में जीने का लाभ उसकी समझ में आ चुका था। बस उसके मन में एक ही सवाल बार-बार उठता कि उस रात बिछिया चाची के रूप में उसे समझाने कौन आया था? (समाप्त)

 

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